भाग 1: कोहरे वाली चट्टानें और पहला संकेत
ब्लैकशोर की चट्टानें समुद्र की उग्र लहरों के बीच जैसे किसी प्राचीन दानव के दांत उभरी थीं। हर पूर्णिमा की रात, चट्टान के किनारे एक लालटेन प्रकट होता। इसकी लौ अजीब रंगों में झिलमिलाती—बैंगनी, नीला और सुनहरा—जैसे स्मृतियाँ जीवित होकर कोहरे में नाच रही हों।
गाँव वाले कहते थे: “जो इसे देखे, उसकी यादें अब वही नहीं रहती।”
मारा, 21 वर्षीय चित्रकार, स्याही और रंगों से स्याह हाथों वाली, बचपन से लालटेन की कहानियों से परिचित थी। उसके माता-पिता बार-बार चेताते, “रात में चट्टानों के पास मत जाना।” लेकिन मारा की जिज्ञासा डर से कहीं अधिक प्रबल थी।
उस रात, पूर्णिमा की चाँदनी में, मारा ने चुपके से गाँव छोड़ा। कोहरा घना, ठंडी हवाएँ तेज़, और समुद्र की गर्जना डरावनी थी। हर कदम पर उसके दिल की धड़कन तेज़ होती जा रही थी।
जैसे ही मारा चट्टानों तक पहुँची, लालटेन कोहरे में तैर रहा था। उसकी लौ मानो जीवित थी—हर पल बदलती।
मारा ने झटके से साँस रोकी। कोहरे में आकृतियाँ उभर रही थीं—कुछ हँसते बच्चे, अजनबी चेहरे, और अचानक—एक चेहरा जिसकी आँखें सीधे मारा को देख रही थीं। उसका हृदय तेज़ी से धड़कने लगा।
मारा धीरे-धीरे लालटेन के पास बढ़ी। हर कदम पर उसके मन में सवाल उठ रहे थे—क्या ये दृश्य वास्तविक हैं, या उसकी कल्पना?
फुसफुसाहटें हवा में गूंजने लगीं, जैसे कोहरा जीवित हो गया हो।
“तुम आ चुकी हो… अब यह खेल शुरू है…”
मारा ने कांपते हुए अपने हाथ को अपने सीने पर रखा। वह जानती थी—कोहरे और लालटेन की दुनिया में हर कदम उसे और गहरे खींच रहा था।
भाग 2: छायाओं का पीछा और गाँव का बदलता सच
मारा हर पूर्णिमा रात लालटेन का पीछा करती। लालटेन उसे गहरे रहस्यों और अज्ञात शक्तियों की ओर खींचता।
एक रात उसने देखा—उसके माता-पिता नगर के मेयर से किसी गुप्त बैठक में। उनके चेहरे तनाव से सिकुड़ रहे थे। अगले दृश्य में, उसका बचपन का दोस्त किसी अज्ञात व्यक्ति से गुप्त संवाद कर रहा था।
मारा की साँसें अटक गईं। वह महसूस कर रही थी कि वह केवल दर्शक नहीं रही—वह निर्माता बन रही थी। हर दृश्य में, हर स्मृति में उसकी जिज्ञासा ने आकार लिया।
गाँव धीरे-धीरे बदलने लगा। लोग भूलने लगे—साधारण रास्ते, पुराने पड़ोसी, अपने घर की सीढ़ियाँ। मारा समझ गई—लालटेन केवल स्मृतियाँ नहीं दिखा रहा था, यह उन्हें बदल रहा था।
एक रात, लालटेन ने फुसफुसाया:
“और जानना चाहते हो? सच… शक्ति… और रहस्य?”
मारा ने हाँ कहा। जैसे ही उसने इच्छा जताई, हवा तेज़ हो गई और कोहरा घना हो गया।
अचानक, उसने देखा—एक छाया चट्टान के किनारे खड़ी थी, उसकी ही तरह। आँखों में अनंत रात की खोखली उदासी। हाथ में उसके हाथ को पकड़ते हुए, छाया धीरे-धीरे कहती—
“तुमने इसे बुलाया है। अब तुम इसके जाल में फंसी हो।”
मारा की साँसें अटक गईं। कोहरा चारों ओर घुम रहा था, हर फुसफुसाहट उसके कानों में डर और रहस्य भर रही थी।
भाग 3: अवतरण, अंतिम विकल्प और रहस्य का समाधान
मारा ने ठानी—सत्य जानना ही होगा। वह रात में चट्टानों पर चढ़ी। हवा तेज़ और ठंडी थी, कोहरा इतना घना कि हर कदम खतरे से भरा था।
ऊपर पहुँचते ही लालटेन ने चमक बढ़ाई। उसने हाथ बढ़ाया—ठंडे स्पर्श ने उसका हाथ पकड़ लिया।
छाया सामने आई। यह मारा जैसी थी, लेकिन बड़ी और डरावनी।
“तुम नहीं आनी चाहिए थी,” फुसफुसाई।
“लालटेन सत्य नहीं दिखाता—यह उसे बनाता है। जो तुमने देखा और बदला, वह सब तुम्हारी इच्छा का परिणाम है।”
मारा के मन में डर और भय ने जगह बना ली। लालटेन ने फुसफुसाया:
“इसे अपनाओ… इसे नियंत्रित करो… तुम निर्माता हो।”
छाया ने चेताया:
“गाँव, लालटेन, तुम्हारी जिंदगी—सब इस लौ से जुड़ी है। इसे रोकने के लिए, तुम्हें जानने और नियंत्रित करने की इच्छा छोड़नी होगी।”
मारा समझ गई—जिज्ञासा ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी थी।
लालटेन चमक उठा—कोहरा, चट्टानें और समुद्र सब उजागर। मारा चट्टान की किनारे खड़ी थी। नीचे गाँव लगभग अजनबी लग रहा था।
उसके पास केवल दो विकल्प थे:
- नियंत्रण लेना और अगली छाया बनना।
- पीछे हटना और लालटेन को फीका पड़ने देना।
हवा में अचानक तेज़ चीखें गूँजीं—जैसे गाँव की सभी खोई यादें मारा के कानों में फुसफुसा रही हों।
मारा ने धीरे-धीरे हाथ छोड़ दिया। लालटेन एक बार तेज़ चमका और धीरे-धीरे गायब हो गया। कोहरा उठ गया। गाँव सामान्य और अपूर्ण दिखने लगा।
छाया गायब हो गई। लालटेन नहीं रहा। मारा घुटनों के बल गिर पड़ी—थकी, डरी, लेकिन मुक्त।
परिशिष्ट: कोहरे में गूँज और रहस्य
गाँव ने लालटेन के बारे में कभी बात नहीं की। मारा ने चट्टानों की चित्रकारी की। कभी-कभी हवा के झोंके में फुसफुसाहटें सुनाई देतीं—अब हल्की और दूर की थीं।
मारा जानती थी—कुछ रहस्य महसूस करने के लिए होते हैं, हल करने के लिए नहीं। जिज्ञासा, जब अनियंत्रित हो, वास्तविकता को बदल सकती है। और छोड़ देना ही जीवित रहने का सबसे बड़ा तरीका होता है।
